दिल्ली सुरक्षा सिस्टम से लैस होगी, कैपिटल डोम तैयार:थ्री लेयर सिस्टम, आउटर रिंग में सिग्नल तो मिडिल में मिसाइलें तैनात होंगी

देश की राजधानी दिल्ली चौतरफा सुरक्षा सिस्टम से लैस होने जा रही है। इसे कैपिटल डोम नाम दिया गया है। ऑपरेशन सिंदूर के वक्त पाकिस्तान ने दिल्ली पर मिसाइलें दागी थीं, लेकिन हमारे स्वदेशी एयर डिफेंस सिस्टम ने इसे हवा में ही मार गिराया था। इसी के बाद दिल्ली को अलग से एक ‘सुदर्शन चक्र’ का सुरक्षा घेरा देने पर मंथन किया गया। फिलहाल यह सिस्टम लगभग तैयार है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की अगुवाई में जिस डिफेंस सिस्टम को तैयार किया जा रहा है, उसमें दिल्ली के चारों ओर तीन सुरक्षा घेरे होंगे। इन्हें आउटर, मिडिल और इनर रिंग नाम दिया गया है। ये दिल्ली की सरकारी इमारतों, हवाई अड्‌डों जैसे महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों और उनके आसपास तैनात होंगे। आउटर रिंग में सिग्नल सिस्टम तो मिडिल में मिसाइलें तैनात होंगी। ये दुश्मन की हर रेंज की मिसाइलों, ड्रोन्स, लड़ाकू विमानों या लायटरिंग एम्युनिशन को नाकाम कर देगा। ऐसे काम करेंगे दिल्ली के सुरक्षा घेरे... आउटर रिंग: वॉच टावर या डिटेक्शन एंड कमांड नेटवर्क सिग्नल सेंटर। एनसीआर के इर्द-गिर्द रडार, कैमरों और सेंसरों का पूरा नेटवर्क होगा, जो सुपर विजिलेंट कैमरों की तरह खतरों पर निगाह रखेगा। आसमानी खतरा देखते ही तय करेगा कि कौन सी रिंग इसे नाकाम करे। उसे सिग्नल भेज देगा। इनर रिंग: इसमें वैरी शॉर्ट रेंज एयर डिफेंस सिस्टम होगा। यदि 6 किमी नीचे उड़ान भर रहा कोई जेट या मिसाइल आउटर या मिडिल रिंग को चकमा देकर आता है तो वीशोर्ड्स अटैक करेगा। इस सिस्टम को कंधे पर ले जा सकते हैं। यह पॉइंट ऐम एंड फायर तकनीक पर काम करेगा। मिडिल रिंग: स्नाइपर स्क्वॉड। इसमें क्विक रिएक्शन सरफेस टू एयर मिसाइलें होंगी। स्पीड मैक-2 रहेगी। दुश्मन के जेट या क्रूज मिसाइल से हमला होते ही यह सक्रिय होगा। ट्रग पर लगे लॉन्चर्स से 30 किमी ऊंचाई पर टारगेट करेंगी। दुश्मन मिसाइल को हवा में ही मार गिराएंगी। सॉफ्ट किल सिस्टम भी लगे होंगे कमांड सेंटर में सॉफ्ट किल सिस्टम भी होंगे, जिसमें जैमिंग प्रणाली और लेजर किरणों से हमलावर सिस्टम को निष्फल किया जा सकेगा। पूरा सिस्टम मोबाइल होगा और इसे समय के साथ अपग्रेड किया जा सकेगा। इंटीग्रेटेड एयर डिफेंस सिस्टम को रूसी मिसाइल रोधी प्रणाली एस--400 से भी जोड़ा जाएगा। यह सिस्टम पूरी तरह स्वदेश में विकसित किया जा रहा है। बाद में इसी के इर्दगिर्द सुदर्शन चक्र का जाल बुना जाएगा।