पश्चिम बंगाल में राज्य सरकार द्वारा चलाए जाने वाले यूनिवर्सिटीज के प्रशासनिक बदलाव को लेकर विवाद और गहरा गया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन संशोधन विधेयकों को मंजूरी देने से इनकार कर दिया है, जिनके तहत राज्य के यूनिवर्सिटीज में चांसलर के पद पर राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री को नियुक्त करने का प्रावधान किया गया था। इस फैसले के साथ ही यह तय हो गया कि मौजूदा व्यवस्था बरकरार रहेगी और वर्तमान राज्यपाल सी. वी. आनंद बोस ही यूनिवर्सिटीज के चांसलर बने रहेंगे। मुख्यमंत्री को चांसलर बनाने का प्रस्ताव था एक अधिकारी ने बताया कि पश्चिम बंगाल विधानसभा द्वारा पारित तीन संशोधन विधेयकों पश्चिम बंगाल यूनिवर्सिटी लॉज़ (संशोधन) बिल, 2022, आलिया यूनिवर्सिटी (संशोधन) बिल, 2022 और पश्चिम बंगाल यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज (संशोधन) बिल, 2022 को राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली है। इन विधेयकों में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री को राज्य सरकार द्वारा चलाए जाने वाले यूनिवर्सिटीज का चांसलर बनाने का प्रस्ताव रखा गया था। मौजूदा कानूनी प्रावधान प्रभावी रहेंगे गौरतलब है कि अप्रैल 2024 में राज्यपाल सी. वी. आनंद बोस ने इन तीनों विधेयकों को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित कर दिया था। ये विधेयक जून 2022 में पश्चिम बंगाल विधानसभा से पारित हुए थे। उस समय राज्य के राज्यपाल जगदीप धनखड़ थे। सरकार ने यूनिवर्सिटीज का संचालन प्रभावी होने का हवाला दिया था राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच यूनिवर्सिटीज के प्रशासन को लेकर लंबे समय से चल रही खींचतान के बीच ममता बनर्जी सरकार ने यह कानून लाने की पहल की थी। राज्य सरकार का तर्क था कि मुख्यमंत्री को चांसलर बनाने से प्रशासनिक निर्णय तेजी से लिए जा सकेंगे और यूनिवर्सिटीज का संचालन अधिक प्रभावी होगा। हालांकि, केंद्र स्तर पर की गई जांच और विचार-विमर्श के बाद राष्ट्रपति ने इन विधेयकों को मंजूरी देने से इनकार कर दिया। इसके साथ ही राज्य-सहायता प्राप्त यूनिवर्सिटीज को नियंत्रित करने वाले मुख्य अधिनियम लागू रहेंगे, जिनमें स्पष्ट रूप से प्रावधान है कि राज्यपाल ही यूनिवर्सिटीज के चांसलर होंगे। शिक्षक संगठनों ने कहा- चांसलर शिक्षाविद होना चाहिए, नेता नहीं। इस पूरे मामले पर दो शिक्षक संगठनों का भी बयान सामने आया है। वेस्ट बंगाल कॉलेज एंड यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन ने मंगलवार को कहा कि राज्य विश्वविद्यालयों का चांसलर किसी राजनीतिज्ञ के बजाय एक शिक्षाविद होना चाहिए। संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारी सुभोदय दासगुप्ता ने कहा- हमारा मानना है कि किसी विश्वविद्यालय का चांसलर एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद होना चाहिए, और कोई नहीं। उन्होंने आगे कहा- भले ही राष्ट्रपति मुख्यमंत्री को चांसलर बनाने वाले विधेयक को इनकार कर दें, हमारा रुख नहीं बदलेगा। न तो राज्यपाल और न ही मुख्यमंत्री को चांसलर होना चाहिए। यह पद किसी प्रख्यात शिक्षाविद के पास होना चाहिए। WBCUTA की इस राय से सहमति जताते हुए जादवपुर यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (JUTA) ने भी कहा कि चांसलर हमेशा एक शिक्षाविद ही होना चाहिए। JUTA के महासचिव पार्थ प्रतिम रॉय ने कहा, “हम मानते हैं कि चांसलर एक शिक्षाविद् होना चाहिए, न कि कोई राजनेता। चांसलर को विश्वविद्यालय की विभिन्न समस्याओं के समाधान में सक्रिय रूप से शामिल होना चाहिए।” --------------------------------------------------------------- ये खबर भी पढ़ें... बंगाल में SIR की ड्राफ्ट वोटर लिस्ट जारी:58 लाख 20 हजार 898 वोटरों का नाम कटा; जानिए कैसे लिस्ट में नाम जुड़वा सकते हैं चुनाव आयोग ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल की विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की ड्राफ्ट वोटर लिस्ट जारी कर दी है। इसके साथ ही घर-घर जाकर जानकारी जुटाने का काम पूरा हो गया है। अब आगे दावा, आपत्ति और सुनवाई की प्रक्रिया शुरू होगी। चुनाव आयोग के अनुसार राज्य में 58 लाख 20 हजार 898 वोटरों के नाम हटाने के लिए चिन्हित किए गए हैं। इनमें 24 लाख 16 हजार 852 नाम मृत वोटरों के हैं। 19 लाख 88 हजार 76 वोटर ऐसे हैं जो स्थायी रूप से दूसरी जगह चले गए हैं। पूरी खबर पढ़ें...