उत्तराखंड में जंगली जानवरों का आतंक, खेती छोड़ रहे किसान:दिन में बंदर रात में सूअर पहुंचा रहे नुकसान, पिथौरागढ़ में 16 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि बंजर

उत्तराखंड के शांत और सुंदर पहाड़ आज एक अलग ही कहानी बयां कर रहे हैं। यहां के गांवों में मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, जिससे आम आदमी त्रस्त है। कभी हरे-भरे खेतों से गुलजार रहने वाले ये इलाके अब वीरान होते जा रहे हैं, क्योंकि बंदरों और सुअरों के आतंक ने किसानों को खेती छोड़ने पर मजबूर कर दिया है। सरकार की ओर से किसान सम्मान निधि, क्रेडिट कार्ड, फसल बीमा जैसी योजनाओं के बावजूद खेती का दायरा सिकुड़ रहा है। पहाड़ों में जंगलों से आने वाले वन्य जीवों के खतरे कारण किसान अपनी पुश्तैनी जमीन को छोड़कर शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर हैं। पिथौरागढ़ जिले में स्थिति इतनी गंभीर है कि पिछले एक दशक में 16476 हेक्टेयर कृषि भूमि बंजर हो गई है। जिन खेतों में कभी फसलें लहराती थीं, वहां अब घास और झाड़ियां उग आई हैं। कम हुआ खरीफ और रबी का रकबा कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार, पिथौरागढ़ जिले में 73,744 किसान हैं। घाटी वाले इलाकों में तराई की तरह कृषि उपज होती है, जबकि ऊंचाई वाले इलाकों में खेती और बागवानी ही लोगों की मुख्य आजीविका रही है, लेकिन गांवों से पलायन के कारण खेत बंजर होते जा रहे हैं। पिछले एक दशक में खरीफ और रबी का कुल रकबा 16476 हेक्टेयर कम हो गया है। वर्ष 2015-16 में जिले में 43,776 हेक्टेयर भूमि पर खरीफ की फसल बोई जाती थी। पिछले एक दशक में अब यह रकबा घटकर 34,179 हेक्टेयर रह गया है। 3 प्वाइंट्स में समझिए खेती करने में क्या-क्या चुनौतियां हैं ? 4.6 प्रतिशत लोगों ने जंगली जानवरों के कारण छोड़ी खेती पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार सीमांत जिले पिथौरागढ़ के 384 गांवों से लोगों ने बड़ी संख्या में पलायन किया है। सबसे अधिक 42.81 प्रतिशत पलायन आजीविका के लिए हुआ। शिक्षा के लिए 19.15 प्रतिशत लोगों ने घरबार छोड़ा तो 10.13 प्रतिशत लोग चिकित्सा सुविधाओं के लिए शहरों में रहने लगे। इसके बाद पलायन का जो सबसे बड़ा कारण है वह जंगली जानवरों का भय और कृषि उत्पादन में कमी होना है। खेतीबाड़ी छोड़ने वाले 8.72 प्रतिशत लोगों में से 4.6 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जिन्होंने बंदरों सहित अन्य पशुओं के कारण खेती छोड़ी है। खेती छोड़ने वालों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। बंदर, सूअर, भालू से ही किसानों की मेहनत पर पानी फेर रहे हैं। इसके बावजूद वन्य जीवों से फसलों की सुरक्षा को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाये जा रहे हैं। गांव के लोग बंदरों से त्रस्त ग्रामीणों ने बताया कि सुबह से खेतों और घरों में डेरा डालने वाले बंदरों द्वारा नुकसान पहुंचाने से गांव के करीब 90 फीसदी परिवार गेहूं, धान की खेती पहले ही छोड़ चुके हैं। गांव में कभी संतरे और माल्टा के बागान थे। इसके अलावा गन्ने की खेती भी की जाती थी। बंदर खेतों में कुछ भी नहीं छोड़ रहे हैं। बाड़ों में सब्जी तक नहीं उगा पा रहे हैं। यदि खेतों में मेहनत कर कुछ बोते भी हैं तो बंदर सब कुछ तहस नहस कर देते हैं। दिन भर बंदरों से बचाकर रखो तो रात को सूअर नुकसान पहुंचा रहे हैं। 4 साल पहले छोड़ दी खेती कनालीछीना की स्थानीय निवासी पुष्पा देवी ने बताया कि बंदर खेतों में कुछ भी नहीं छोड़ते हैं। भगाने पर काटने को दौड़ते हैं। पूरा दिन भगाने में बीत जाता है। चार साल से धान-गेहूं बोना छोड़ दिया है। सब्जी लगाते थे, लेकिन बंदरों के नुकसान पहुंचाने से अब सब्जी बोना भी छोड़ना पड़ेगा। घरों को भी पहुंचा रहे नुकसान गुड़ौली ग्रामसभा के ग्राम प्रधान त्रिलोचन पांडेय ने कहा कि गांव में बंदरों की समस्या बड़े स्तर पर है। लोग खेती, बागवानी नहीं कर पा रहे हैं। बंदर घरों के छतों के पत्थर तक निकालकर नुकसान पहुंचा रहे हैं। जल्द ही इस समस्या के समाधान के लिए डीएफओ से मुलाकात की जाएगी।