जब गुरु गोलवलकर की मृत्यु हुई तो उनका पार्थिव शरीर नागपुर में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया. वहीं पर गोलवलकर द्वारा लिखित और मुहरबंद तीन पत्र खोले गए. इन पत्रों में उन्होंने अपनी आखिरी इच्छा व्यक्त की, अपनी भूलों के लिए क्षमा याचना की और संत तुकाराम की रचना का उल्लेख किया. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.