उत्तराखंड के उच्च हिमालयी इलाकों में मौसम का बदला मिजाज अब साफ नजर आने लगा है। लंबे समय से बारिश और बर्फबारी न होने के साथ ही दिन में तेज धूप के कारण हिमालय की बर्फ तेजी से पिघल रही है। पिथौरागढ़ जिले की पंचाचूली चोटियों के बाद अब हंसलिंग पर्वत श्रृंखला की चोटियां भी पूरी तरह काली पड़ चुकी हैं। जो चोटियां इस समय तक बर्फ से ढकी रहती थीं, वहां अब पत्थर और चट्टानें साफ दिखाई दे रही हैं। मौसम विशेषज्ञ डॉ चेतन ने इसे ग्लोबल वार्मिंग और पश्चिमी विक्षोभ के कमजोर पड़ने का असर बताया है। उन्होंने कहा कि हालात यह हैं कि चार महीने से क्षेत्र में कोई प्रभावी बारिश नहीं हुई है, जिससे हिमालयी पारिस्थितिकी के साथ-साथ खेती और बागवानी पर भी असर पड़ रहा है। क्यों पिघल रही है हिमालय की बर्फ पिछले डेढ़-दो दशकों में मौसम के पैटर्न में बड़ा बदलाव देखा गया है। इस साल सितंबर में हल्के हिमपात के बाद से उच्च हिमालयी क्षेत्र पूरी तरह शुष्क बना हुआ है। दिन में तेज धूप के कारण अधिकतम तापमान 22 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच रहा है। इसी वजह से हिमालय की बर्फ तेजी से पिघल रही है और चोटियां काली पड़ती जा रही हैं। नवंबर में ही बर्फविहीन हो गई थीं पंचाचूली की चोटियां अगस्त के अंतिम सप्ताह से सितंबर के पहले सप्ताह तक मौसम ठीक रहा था और उस दौरान ऊंचे इलाकों में बर्फबारी हुई थी। लेकिन इसके बाद बारिश और हिमपात पूरी तरह थम गया। नतीजा यह रहा कि पंचाचूली की चारों चोटियों से नवंबर महीने में ही बर्फ गायब हो गई। अब हंसलिंग की पहाड़ियां भी पूरी तरह काली नजर आ रही हैं। पंचाचूली और हंसलिंग को देखने हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं, लेकिन बर्फ न होने से पर्यटक भी निराश लौट रहे हैं। स्थानीय लोगों ने पहले कभी नहीं देखा ऐसा हिमालय मुनस्यारी निवासी हीरा सिंह चिराल बताते हैं कि हंसलिंग और पंचाचूली की चोटियों पर अब बर्फ दिखाई नहीं देती। बर्फ इतनी तेजी से पिघल रही है कि हिमालय का यह रूप उन्होंने पहले कभी नहीं देखा। वहीं, पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रहे पिथौरागढ़ निवासी डॉ. पीतांबर अवस्थी का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते मौसम में असंतुलन बढ़ा है। हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय दखल और कार्बन उत्सर्जन ने पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचाया है। मौसम विभाग का अनुमान क्या कहता है केवीके पिथौरागढ़ के मौसम विशेषज्ञ डॉ. चेतन भट्ट के अनुसार पश्चिमी विक्षोभ के सक्रिय न होने से बारिश नहीं हो रही है। पिछले साल भी इसी तरह के हालात बने थे। तापमान बढ़ने के कारण बर्फ तेजी से पिघल रही है। हालांकि, ला-नीना के प्रभाव से 21 दिसंबर के आसपास ऊंची चोटियों पर हल्की बर्फबारी की संभावना है, जबकि अन्य इलाकों में अगले दस दिनों तक मौसम शुष्क बना रह सकता है। खेती और बागवानी पर भी सूखे का असर बारिश में देरी का असर पहाड़ी खेती और बागवानी पर भी साफ दिखने लगा है। पहाड़ों में सीमित इलाकों में ही सिंचाई की सुविधा है, जबकि अधिकांश खेती बारिश पर निर्भर रहती है। पिथौरागढ़ जिले के गांवों में माल्टा, संतरा और सेब का अच्छा उत्पादन होता है। मुनस्यारी और धारचूला के ऊंचाई वाले इलाकों में आलू और राजमा की खेती होती है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, गेहूं, जौ और मसूर की फसलों को इस समय पानी की जरूरत है, लेकिन बारिश न होने से फसलों की ग्रोथ प्रभावित हो रही है। -------- ये खबर भी पढ़ें... केदारनाथ-बद्रीनाथ के आसपास की पहाड़ियां भी बर्फविहीन, विशेषज्ञ बोले- खतरे में दुर्लभ जड़ी-बूटियां उत्तराखंड में इस बार मौसम में बदलाव देखने को मिल रहा है। पहले के सालों में जिन हिमालयी क्षेत्रों में अबतक बर्फबारी शुरू हो जाती थी वो भी इस साल बर्फवहीन दिख रहे हैं। मौसम चक्र में आए इस बदलाव के प्रत्यक्ष और चिंताजनक परिणाम भी अब सामने आने लगे हैं। (पढ़ें पूरी खबर)