कार्बी आंगलोंग हिंसा-11 हजार लोग घरों में कैद, बाजार बंद:सेना समेत 700 जवानों का 12 गांवों में फ्लैग मार्च, खौफ में हजारों बाहरी

असम के 12 लाख की आबादी वाले स्वायत्तशासी कार्बी आंगलोंग में इस समय आप किसी से भी बात करेंगे, तो शायद जवाब न मिले, क्योंकि हिंसा का खौफ लोगों के दिल और दिमाग में बैठ गया है। घरों में चूल्हे ठंडे पड़े हैं। बाजार बंद हैं। मोबाइल डेटा सर्विस बंद है। 22-23 दिसंबर को यहां स्थानीय कार्बी आदिवासी और ‘बाहरी’ लोगों के बीच हुई हिंसा में 2 की मौत हो गई थी। 60 पुलिसकर्मियों समेत 150 से ज्यादा घायल हैं। इनमें एक दिव्यांग सूरज डे को भीड़ ने जिंदा जला दिया था। भास्कर टीम गुरुवार को जब वेस्ट कार्बी आंगलोंग के खेरोनी घाट पहुंची, तो पीड़ित परिवारों ने नाम न छापने की शर्त पर सिर्फ इतना बताया कि वे तीन दिन से सोए नहीं हैं। ये खौफ जिले के उन 12 गांवों में हैं, जहां विवाद है। इन गांवों में असम पुलिस, रैपिड एक्शन फोर्स (RAF), सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (CRPF) और भारतीय सेना के लगभग एक हजार जवान तैनात हैं। कार्बी जनजाति के संगठनों का दावा है कि जिले में हमारी आबादी अब महज 35% बची है। बाकी 65% बाहरी हैं, जो नेपाल, यूपी और बिहार के हिंदी भाषी लोग हैं। जहां विवाद है, उन गांवों में आबादी करीब 11 हजार है। कार्बी आंगलोंग हिंसा की 2 तस्वीरें... सरकार के 2 एक्शन मरने वाले दोनों लोगों का अंतिम संस्कार हुआ बुधवार रात को दोनों मृतकों का अंतिम संस्कार स्थानीय रिवाजों के अनुसार किया गया। दिव्यांग युवक सुरेश डे का शव उनकी दुकान से बरामद किया गया, जिसे कार्बी भीड़ ने आग लगा दी थी, जबकि स्वदेशी जनजाति के अथिक तिमुंग की पुलिस फायरिंग में मौत हो गई थी। कार्बी समुदाय के आंदोलनकारी 15 दिनों से भूख हड़ताल पर थे। ये लोग कार्बी आंगलोंग और वेस्ट कार्बी आंगलोंग में विलेज ग्रेजिंग रिजर्व VGR और प्रोफेशनल ग्रेजिंग रिजर्व (PGR) जमीनों से अवैध बसने वालों को हटाने की मांग कर रहे थे। अवैध बसाहट में ज्यादातर बिहार के रहने वाले हैं। पुलिस फायरिंग में घायल हुए तीन कार्बी युवकों का गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में इलाज चल रहा है, और उनकी हालत स्थिर है। हिंसा की वजह: 7184 बीघा जमीन, कार्बी लोगों का दावा- इस पर बाहरियों ने कब्जा किया कार्बी आंगलोंग भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत गठित एक स्वायत्त क्षेत्र है। यहां की जमीन कार्बी आदिवासियों के लिए आरक्षित है। 1971 में जिले में कार्बी लोगों की आबादी 65% थी, जो 2011 तक घटकर 56.3% बची। कार्बी जनजाति के संगठनों का दावा है कि अब खेरोनी जैसे बाजारों में व्यापार और बसावट मुख्य रूप से हिंदी भाषी (जैसे बिहारी नोनिया समुदाय) के हाथों में है। पश्चिम कार्बी आंगलोंग जिले में कार्बी और बिहारी समुदाय के लोग आदिवासी इलाकों में विलेज ग्रेजिंग रिजर्व (VGR) और प्रोफेशनल ग्रेजिंग रिजर्व (PGR) जमीनों पर हिंदी बोलने वाले लोगों के अतिक्रमण के आरोपों को लेकर आमने-सामने हैं। जिले की 7184 बीघा से अधिक संरक्षित जमीन पर बाहरियों का कब्जा हो चुका है। यह एक बड़ा चारागाह है, जिस पर अब बिहार, यूपी और नेपाल मूल के परिवार रह रहे हैं। बीते 6 दिसंबर को खेरोनी के फेलांगपी में कार्बी लोग भूख हड़ताल पर बैठ गए थे। उनकी मांग थी कि चारागाह की आरक्षित जमीन और विलेज ग्रेजिंग रिजर्व की जमीन से बाहरियों की बसाहट को हटाया जाए। सोमवार सुबह पुलिस ने कुछ प्रदर्शनकारियों को जबरन हड़ताल से हटा दिया। इसी के बाद सैकड़ों कार्बी लोग जमा हुए और उन्होंने नारेबाजी शुरू की। फिर बाहरियों ने भी विरोध जताया तो हिंसा भड़क गई। दिव्यांग मृतक के परिवार की आपबीती भीड़ ने जिस घर-दुकान में आग लगाई थी, उसमें मारे गए दिव्यांग सूरज के चाचा बकुल डे ने बताया कि उपद्रवियों ने हमारे दिव्यांग बेटे को भी नहीं बख्शा। यदि उस रात अपनी बूढ़ी मां और पत्नी-बच्चों को लेकर हम घर छोड़कर दूसरे गांव नहीं भागते तो शायद नहीं बचते। हमारा घर जल चुका है। आज पुलिस सुरक्षा में सूरज के शरीर के चंद अवशेषों का अंतिम संस्कार किया गया। हम पुलिस सुरक्षा में भी अपने गांव नहीं लौट सकते, वहां दहशत का माहौल है।