राजस्थान में बिना डिग्री के 'इंजीनियर' बनीं दादी-नानी:96 देशों की महिलाओं को दे चुकीं ट्रेनिंग, सोलर पंखा से लेकर कुकर तक बनाती हैं

कभी स्कूल नहीं गईं। गईं भी तो तीसरी-चौथी कक्षा तक ही पढ़ाई कीं। बावजूद इसके दादी-नानी की उम्र की ये महिलाएं किसी 'इंजीनियर' से कम नहीं हैं। सोलर की तकनीकी जानकारी इनको इतनी हो गई है कि दूसरों को सिखा रही हैं। ये बुजुर्ग महिलाएं 96 देशों की 4 हजार से ज्यादा महिलाओं को सोलर ऊर्जा की ट्रेनिंग दे चुकी हैं। सोलर बल्ब, पंखे, बैटरी चार्जर (बीसी), पैनल, कंपोनेंट और टूल्स जैसे आइटम बना लेती हैं। उनकी खराबी भी चुटकी बजाकर ठीक कर लेती हैं। इन महिलाओं की दलाई लामा, प्रिंस चार्ल्स, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन सहित कई नामचीन हस्तियों ने सराहना की है। यह कहानी अजमेर जिले के तिलोनिया गांव स्थित बेयरफुट कॉलेज की है। यह कॉलेज ग्रामीण विकास और स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में काम कर रहा है। ...तो आइए जानते हैं, कैसे यह संस्थान ग्रामीण महिलाओं के जीवन में बदलाव ला रहा है। 1972 में हुई थी कॉलेज की स्थापना अजमेर जिले के तिलोनिया गांव में स्थित बेयरफुट कॉलेज की स्थापना 1972 में हुई थी। यह कॉलेज ग्रामीण विकास और स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में देश-दुनिया में अपनी अलग पहचान बना चुका है। सामाजिक कार्यकर्ता संजीत बंकर रॉय ने इस कॉलेज की स्थापना की थी। बेयरफुट कॉलेज का मकसद ग्रामीण, निरक्षर और अर्द्ध साक्षर महिलाओं को तकनीकी प्रशिक्षण देना है। यहां किताबों से ज्यादा प्रैक्टिकल के माध्यम से सोलर तकनीक सिखाई जाती है। महिलाएं सोलर पैनल, बैटरी, इन्वर्टर, चार्ज कंट्रोलर और वायरिंग को जोड़ना, चलाना और उनकी मरम्मत करना सीखती हैं। कभी खेत में काम करती थीं, आज सिखाती हैं सोलर तकनीक फलोदा गांव (अजमेर) की रहने वाली लीला देवी बताती हैं- मेरी उम्र 60 साल है और मैंने तीसरी कक्षा तक पढ़ाई की है। मुझे ज्यादा पढ़ना-लिखना नहीं आता था। मैं घर और खेत पर काम करके गुजारा करती थी। फिर मैंने सिलाई का काम शुरू किया। इसके बाद में मैंने सोलर की ट्रेनिंग ली। अब मैं सोलर की ट्रेनिंग देती हूं। मैं देश और विदेश की करीब 3 हजार महिलाओं को ट्रेनिंग दे चुकी हूं। 35 साल पहले यहां छह महीने की ट्रेनिंग ली थी बावड़ी (अजमेर) निवासी मगन कंवर कहती हैं- मेरी उम्र 55 साल है। मैंने 35 साल पहले यहां छह महीने की ट्रेनिंग ली थी। अब तक मैं यहां ट्रेनिंग दे रही हूं। मैं यहां महिलाओं को सोलर के बीसी, एसी, पैनल, कंपोनेंट, टूल्स सहित कलर कोड आदि का काम सिखाती हूं। मैं तीसरी कक्षा पास हूं, लेकिन आज मैं सोलर लाइटों की मरम्मत (मेंटेनेंस) भी कर लेती हूं। कभी स्कूल नहीं गईं, 2019 से सोलर की ट्रेनिंग दे रहीं उर्मिला शर्मा ने बताया- मैं टोंक की रहने वाली हूं। मैंने 8वीं तक पढ़ाई की है। मैं घरेलू काम और सिलाई करके जीवनयापन करती थी। 2018 में मैंने सोलर की ट्रेनिंग ली और आज मैं ट्रेनिंग देती हूं। लाडा देवी ने बताया-, मैं तिलोनिया गांव (अजमेर) की ही रहने वाली हूं। कभी स्कूल नहीं गई। मैं सिलाई और घरेलू काम ही करती थी। 2019 से मैं यहां सोलर की ट्रेनिंग दे रही हूं। मैं यहां सोलर कुकर बनाती हूं शहनाज बानो ने बताया- मैं अराई (अजमेर) की रहने वाली हूं। पहले घरेलू काम करती थी। मैं पांचवीं तक पढ़ी हूं। 2020 से सोलर की ट्रेनिंग ले रही हूं। अब मैं यहां सोलर कुकर बनाती हूं और अब अन्य महिलाओं को ट्रेनिंग दे रही हूं। फूलवंती देवी ने बताया- मैं बिहार के गया जिले की रहने वाली हूं। कभी स्कूल नहीं गई। मैं पिछले 12 साल से यहां पर हूं और मैंने सोलर की ट्रेनिंग यहीं पर ली। कोरोना में काम बंद हुआ तो सीखा सोलर माया देवी ने बताया- मैं किशनगढ़ के देव डूंगरी की रहने वाली हूं। नौवीं कक्षा तक पढ़ी हूं। सोलर का काम सीखकर पिछले छह साल से ट्रेनिंग दे रही हूं। इससे पहले मैं ड्राइविंग करती थी। विदेशी महिलाओं को बेयरफुट कॉलेज लाने-ले जाने का काम करती थी। कोरोना काल में काम लगभग बंद हो गया, इसलिए मैंने सोलर की ट्रेनिंग ली। जवाजा (अजमेर) की तराना कुमारी बताती हैं- यहां आने पर मुझे सोलर के बारे में पता चला। मैं अभी ट्रेनिंग ले रही हूं। 12वीं पास करके आई हूं। मैं यहां कंपोनेंट, टूल्स और कलर कोडिंग सीख रही हूं। आगे मैं रोजगार के लिए सोलर की मरम्मत (मेंटेनेंस) का काम भी कर सकूंगी। सोलर, हेल्थ, पानी और शिक्षा पर काम सोलर ट्रेनिंग के प्रभारी कमलेश बिष्ट ने बताया- हमने 96 देशों की 4 हजार से ज़्यादा महिलाओं को ट्रेनिंग दी है। वर्तमान में हम यहां पर सोलर, हेल्थ, पानी और शिक्षा पर काम करते हैं। दुनिया ने सराहा बेयरफुट कॉलेज की अनूठी पहल और ग्रामीण विकास में इसके योगदान को दुनिया भर में सराहा गया है। दलाई लामा, प्रिंस चार्ल्स और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन जैसी कई नामचीन हस्तियों ने इस कॉलेज का दौरा किया है और इसकी सराहना की है। यही कारण है कि विदेशी महिलाओं ने भी यहां आकर ट्रेनिंग लेने में रुचि दिखाई है, ताकि वे अपने समुदायों में भी इसी तरह का बदलाव ला सकें। खुद बनाते हैं अपनी बिजली, कॉलेज का सोलर पावर प्लांट बेयरफुट कॉलेज न केवल दूसरों को सोलर ऊर्जा के बारे में सिखाता है, बल्कि खुद भी इसका उपयोग करता है। तिलोनिया स्थित कॉलेज परिसर में 300 किलोवाट का सोलर पावर प्लांट लगा है, जिससे परिसर को बिजली की आपूर्ति की जाती है। सोलर ट्रेनिंग के प्रभारी कमलेश बिष्ट बताते हैं कि इससे बिजली के खर्च में काफी बचत होती है। सोलर ऊर्जा का उपयोग करके, बेयरफुट कॉलेज न केवल अपने खर्चों को कम कर रहा है, बल्कि दूसरों को भी स्वच्छ ऊर्जा अपनाने के लिए प्रेरित कर रहा है।